शनिवार, 8 मई 2010

फूड प्वाइज़निंग

फूड प्वाइज़निंग

आज दिनाँक 08 मई, 2010 को सुबह 09:00 बजे अपने कार्यस्थल को जाते हुए बस से एक दृश्य देखा जिसने मुझे यह लेख लिखने पर मजबूर कर दिया। मेरी बस एक रेलवे क्रॉसिंग पर खड़ी थी। तभी मैंने सड़क किनारे खड़े एक कुत्ते को कुछ अजीब सा व्यवहार करते पाया। ध्यान से देखा तो पाया कि वो कुत्ता उल्टी कर रहा था। उस समय उसकी स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उसे अपच की शिकायत नहीं लग रही थी क्योंकि खाना पूरी तरह पचा हुआ था। शायद उसे फूड प्वाइज़निंग हो गई थी। तब मेरे दिमाग में मात्र एक दिन पहले अखबार में छपी एक खबर का ख्याल आया जिसमें एक स्कूल के 'मिड-डे मील' खाने से हुई फूड प्वाइज़निंग के कारण लगभग 30 बच्चे बीमार पड़ गए थे। ये खबरें सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि आज के युग का इंसान किसी भी तरह से केवल पैसा कमाना चाहता है चाहे इसके लिए उसे किसी की जान से भी खिलवाड़ क्यों न करना पड़े। आज सब्ज़ी, फल, दूध, घी, पनीर आदि प्रत्येक चीज़ में मिलावट हो रही है। और सबसे बड़ी विसंगति तो यह है कि इन चीज़ों का सेवन करने पर यदि कोई बीमार पड़ता है तो उसकी जीवनरक्षक कहलाने वाली दवाईयाँ भी नकली आ रही हैं जो उसकी जीवन रूपी आग में घी डालने का काम कर रही हैं। इसलिए आज इंसान क्या जानवर भी खाद्य पदार्थों का सेवन करने पर प्रभावित हो रहे हैं। यदि समय रहते ऐसा घृणित कृत्य करने वालों के लिए कठोर कानून नहीं बनाए गए तो हमारी आने वाली पीढ़ी पर इसका प्रभाव कितना भयानक हो सकता है, इस बात का अंदाज़ा बखूबी लगाया जा सकता है।

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लेखक सुशील जोशी

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