शनिवार, 29 मई 2010
शुक्रवार, 28 मई 2010
मंगलवार, 25 मई 2010
शनिवार, 22 मई 2010
शुक्रवार, 21 मई 2010
गुरुवार, 20 मई 2010
रविवार, 16 मई 2010
नसीब
तेरे लिए मैं गुनगुना रहा हूँ
तेरे लिए कविता गा रहा हूँ.
तुझे याद नहीं छोटा था जब तू
तब से तेरे घर चला आ रहा हूँ.
मनाते थे जब लोग घर में दीवाली
तुझसे मैं दीवाला मनवा रहा हूँ.
जलते थे दीये जब घी के घरों में
तेरे घर अँधेरा किए जा रहा हूँ.
मैं ही तेरे हर काम की रुकावट
मैं ही तुझे नीचा दिखला रहा हूँ.
फिर भी कभी तूने कोसा न मुझको
मैं कोशिश पे कोशिश किए जा रहा हूँ.
अब तेरी मेहनत से खुश हो गया हूँ
मैं नसीब हूँ तेरा अब जगमगा रहा हूँ.
तभी तो मैं तेरे लिए गा रहा हूँ
तेरे लिए ही गुनगुना रहा हूँ.
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सार – हमें हर परिस्थिति का मुकाबला ये
सोचकर करना चाहिए कि हर रात के बाद
सुबह होती है। आज दुख है तो कल खुशी
के दिन भी आएँगे।
------------------------------------सुशील जोशी
गुरुवार, 13 मई 2010
चक्रधर चमन - चर्चा का विषय ‘परिवार’
इस कार्यक्रम में चक्रधर जी ने ‘परिवार’ विषय पर टिप्प्णी स्वरुप भेजी गई कुछ रचनाएं अपनी आवाज में पढकर सुनाईं। मेरे द्वारा रचित कुछ पंक्तिया भी पढ कर सुनाई गईं, जो इस प्रकार हैं :
स्वर्ग का जैसे हो द्वार बन जाता है,
जीवन में खुशियों का त्यौहार बन जाता है,
बैर, घृणा, द्वेष दिल से निकाल दो अगर
एक खुशनुमा परिवार बन जाता है।
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-----------------------------------------------------सुशील जोशी
बुधवार, 12 मई 2010
प्रेम की पाती
दोस्ती की नहीं
क्योंकि दोस्ती तो एक राह का रिश्ता है
और इन राह का रिश्तों से
कहीं बड़े होते हैं
ढाई आखर प्रेम के।
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--------------सुशील जोशी
शनिवार, 8 मई 2010
फूड प्वाइज़निंग
फूड प्वाइज़निंग
आज दिनाँक 08 मई, 2010 को सुबह 09:00 बजे अपने कार्यस्थल को जाते हुए बस से एक दृश्य देखा जिसने मुझे यह लेख लिखने पर मजबूर कर दिया। मेरी बस एक रेलवे क्रॉसिंग पर खड़ी थी। तभी मैंने सड़क किनारे खड़े एक कुत्ते को कुछ अजीब सा व्यवहार करते पाया। ध्यान से देखा तो पाया कि वो कुत्ता उल्टी कर रहा था। उस समय उसकी स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उसे अपच की शिकायत नहीं लग रही थी क्योंकि खाना पूरी तरह पचा हुआ था। शायद उसे फूड प्वाइज़निंग हो गई थी। तब मेरे दिमाग में मात्र एक दिन पहले अखबार में छपी एक खबर का ख्याल आया जिसमें एक स्कूल के 'मिड-डे मील' खाने से हुई फूड प्वाइज़निंग के कारण लगभग 30 बच्चे बीमार पड़ गए थे। ये खबरें सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि आज के युग का इंसान किसी भी तरह से केवल पैसा कमाना चाहता है चाहे इसके लिए उसे किसी की जान से भी खिलवाड़ क्यों न करना पड़े। आज सब्ज़ी, फल, दूध, घी, पनीर आदि प्रत्येक चीज़ में मिलावट हो रही है। और सबसे बड़ी विसंगति तो यह है कि इन चीज़ों का सेवन करने पर यदि कोई बीमार पड़ता है तो उसकी जीवनरक्षक कहलाने वाली दवाईयाँ भी नकली आ रही हैं जो उसकी जीवन रूपी आग में घी डालने का काम कर रही हैं। इसलिए आज इंसान क्या जानवर भी खाद्य पदार्थों का सेवन करने पर प्रभावित हो रहे हैं। यदि समय रहते ऐसा घृणित कृत्य करने वालों के लिए कठोर कानून नहीं बनाए गए तो हमारी आने वाली पीढ़ी पर इसका प्रभाव कितना भयानक हो सकता है, इस बात का अंदाज़ा बखूबी लगाया जा सकता है।
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लेखक – सुशील जोशी